उज्जैन के दक्षिण में शिप्रा नदी से थोडा दूर उज्जैन का खास आकर्षण यहाँ का महाकाल मंदिर है यहाँ का ज्योतिर्लिंग पुराणों में वर्णित ज्योतिर्लिंग में से एक है ।उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल वन में स्थित महाकाल कि महिमा प्राचीन काल से ही दूर-दूर तक फैली हुई है । महाकाल का यह मंदिर न जाने कितनी बार बना और टुटा । आज का महाकाल का यह मंदिर आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व राणोजी सिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने बनवाया था । इसके निर्माण में मंदिर के पुराने अवशेष का भी उपयोग हुआ । रामचंद्र बाबा से भी कुछ वर्ष पहले जयपुर के महाराज जयसिंह ने दवारकाधीश यानि गोपाल मंदिर यहाँ बनवाया था । यहाँ श्रीकृष्ण कि चंडी कि प्रतिमा है। यहाँ तक कि मंदिर के दरवाजे भी चंडी के बने हुए है ।कहा जाता है कि मंदिर के मुख्या द्वार वही है जिसे सिंधिया ने गजनी में लूट में हासिल किया था । इसके पहले यह द्वार सोमनाथ कि लूट के दौरान यहाँ से गजनी पंहुचा था ।
शिव के बारह ज्योतिलिंगो में से एक है महाकाल मंदिर । शिव पूरण में वर्णित कथा के अनुसार दूषक नामक देत्या के अत्याचार से जब उज्जयिनी के निवासी त्रस्त हो गए तोह उन्होंने अपनी रक्षा के लिए शिव कि आराधना की । आराधना से प्रसन्न होकर शिवजी ज्योति के रूप में प्रकट हुए । देत्य का संहार किया और भक्तो के आग्रह पर लिंग के रूप में उज्जयिनी में प्रतिष्टित हो गए ।
महाकाल का शिवलिंग दुनिया का एकमात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग है। तंत्र की दृष्टी से इससे बेहद महत्वपूर्ण माना गया है ।वर्तमान मंदिर मराठाकालीन मन जाता है । इसका जीर्णोद्धार आज से करीब २५० साल पूर्वसिंधिया राजघराने के दीवान बाबा रामचंद्र ने करवाया था । महाकाल शिवलिंग दुनिया का एकमात्र शिवलिंग है, जहाँ भस्म आरती की जाती है ।