महाकाल का इतिहास
भोज देव की म्रत्यु के बाद सन १०५५ ई. में जयसिंह और जयसिंह की म्रत्यु पर १०५९ उदयादित्य में शासन ग्रहण कीया सन १०६० में परमारों द्वारा गुजरात के सामंतो ने आक्रमण किया परन्तु वे हारकर भाग गए उदयसिंग के बाद में लक्ष्मण देव नरवर्म देव और देव पाल ने राज्य किया देवपाल के शासनकाल सन १२३५ में दिल्ली का अल्तमश भेलसा से चलकर उज्जैन आया और बुरी तरह से लुट अनेक देव मंदिर को तोड़ दिए उसके बाद मराठी राज्य स्थापित होते ही सन १७३७ के लगभग सिन्ध्या राज्य के प्रथम संस्थापक राणा जी सिन्ध्या ने यहाँ का राजकाज अपने दीवान रामचंद्र बाबा के हाथो में सोप दीया इसी समय उज्जैन के टूटे फूटे देव मंदिरों का जीर्ण उद्धार कराया गया |
कर्म वीर दीवान रामचंद्र बाबा के हाथो उज्जैन में एक और महँ कार्य हुआ जिसके कारण उनका नाम कभी भुलाया नहीं जा सकता | यह किवदंती है की रामचंद्र बाबा के पास प्राप्त संपत्ति थी परन्तु दुर्भाग्य से उनका कोई पुत्र कोई ना था | प्राचीन परम्पराव के अनुसार उनकी पत्नी अपने वंश को चलने के लिए दत्तक पुत्र को लेने में प्रयत्नशील थी उसका ध्यान विशेषकर अपने भाई के पुत्र की और था, किन्तु रामचंद्र बाबा अपने वंश में किसी योग्य पुत्र की टोह में थे | इतने में ही एक आकस्मिक घटना हुई एक दिन संध्या के समय रामचंद्र बाबा शिप्रा तट पर टहलने गए, उनके पवित्र धर्म स्थानों पर मज्जिदो का निमं हो गया था और गो वध आदि जैसे अत्याचार होते थे इतने में शिप्रा तट के पंडो ने दीवान साहब की सेवा में उपस्थित होकर निवेदन किया की महाराज ६०० वर्ष के अंतर यमन शाई के स्थान पर अब कही भारतीय स्वराज का प्रतीक मराठा राज्य अवंतिका में स्थापित हो चूका है अतः आप कृपा कर यवनों से छुपे हुए एक कोने में भगवन महाकालेश्वर के मंदिर का निर्माण कराये एवं संतान प्राप्ति के लिए शिप्रा तट पर नागबली एवं नारायण बलि के संस्कार सम्पन्न करके, अपने नाम से एक घाट भी निर्मित कीजिये जिससे आप अमर रहे रामचंद्र बाबा के गले तीर्थ पुरोहित की बात उतर गयी उन्होंने शीग्र ही अपने घर लोटकर अपने पत्नी से बड़ी उदारता से कहा “तुम सर्वदा दत्तक पुत्र लेने का आग्रह करती हो ना मल्लों दत्तक पुत्र कैसा निकले ” अतः एकाएक कल्पना उठी है की अपनी संपत्ति का उपयोग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से उज्जैन में भगवन महाकाल मंदिर का पूर्ण निर्माण करे और शिप्रा तट पर पिशाश मुक्तेश्वर और रामघाट बनाकर अपना नाम अमर करे यह कल्पना तुम्हे पसंद है ? ” बहुत ठीक , इससे अधिक श्रेष्ठ क्या हो सकता है अवश्य ही अपने संकल्प पूर्ण कीजिये और ‘यावच्यचन्द्रदिवकारो’ यश के भागी बने | श्रीमती की स्वीकृति लेका रामचंद्र बाबा दीवान ने अपना उक्त स्थान निर्माण कर अपना नाम अमर कर दिया |