पौराणिक कथा का वर्णन
शिव पुराण के अनुसार अपने भक्त भाह्मन की दूषण नामक देत्य से रक्षा करने के लिए उज्जैन में शिव जी प्रकट हुए शिव जी की हुकर से देत्य भस्म हो गया तब अपने चारो पुत्रो सहित भाह्मन ने शिव जी की प्रार्थना की दूषण संसार का काल था और अपने उसे भस्म किया अतः आपका नाम महाकाल हो और आप अपने भक्तो के समस्त मनोरत पूर्ण करे भाह्मन की प्रार्थना स्वीकार कर शिव जी उनके द्वारा स्थापित शिवलिंग में प्रवेश कर गए तब उन भाह्मनो ने पुत्र सहित कुछ ज्योतिर्लिंग का पूजन किया इसी प्रकार एक गोपी ने अपने पुत्र की ज्योतिर्लिंग विशेष भक्ति देखकर रजा चंद्रसेन के युग में एक मंदिर बनवाया था इसी गो बालक की आठवी पीडी नन्द हुई जिसके घर श्री कृष्ण ने लीला की और इसी कथा के अनुसार नन्द की आठवी पीडी पहले महाकाल की स्थापना हुई शिव जी के पंचमलिंग एवं अष्टमलिंग में भी महाकाल की गड़ना हुई है |
स्कंद्पुरण में भी अवंतिका खंड के दुसरे अध्याय में भी महाकाल की कथा प्राप्त होती है तदनुसार प्रलय काल जब ना अग्नि थी ना वायु था ना आदित्य था ना ज्योति थी ना अंतरिक्ष था ना गृह थे ना देव – असुर गन्धर्व , पिचाश , नाग,राक्षस,तालाब,पर्वत,नदी,और ना सागर थे सब और अंधकार था कुछ भी दिखाई नहीं देता था तब लोकानु गृह के कारण सब दिशाओ के देखते हुए अकेले महाकाल ही थे | जगत का सर्जन करने के लिए महाकाल प्रकट हुए उन्होंने गोल स्वर्ग अंड उत्पन्न करके दो भागो में विभाजित किया नीचे का भाग धरती व् ऊपर का भाग तारो सहित अंतरिक्ष कहलाया तब भ्रह्मा उत्पन्न हुए जिन्हें महेह्स्वर ने श्रष्टि के निर्माण के लिए नियुक्त किया भाह्मा ने शिव जी के ध्यान करने पर शिव जी ने उन्हें वेद प्रदान किये एवं भाह्मा जी के आग्रह पर शिव ने महाकाल वन में निवास करना स्वीकार किया |