महाकवि बाण

अवंती देश में उज्जयनी नाम की नगरी है जिसकी शोभा अमरलोक से भी बढकर है वह सब भवनों का तिलक है सतयुग की मानो जन्भूमि है तीनो भुवनो की उत्पत्ति – पालन और नाश करने वाले श्री महाकालेश्वर महादेव ने अपने रहने योग्य मानो अपनी दूसरी प्रथ्वी बनायीं है जिसके चारो तरफ सरातल के सामान गहरी पानी की खाई है ऐसा मालूम होता है मानो उज्जयनी को दूसरी प्रथ्वी समझकर समुद्र आया हो आकाश को छुते हुए शिखर ऐसा लग रहा है मानो कैलाश पर्वत आया हो शिखर पर स्वर्ण कलश है उनपर सफ़ेद ध्वजा लहराती है यह मन्दाकिनी सयुक्त हिमालय में शिखर के सामान दिखाई देते है  |